Published on: April 30, 2025

30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने पहली बार जाति आधारित जनगणना को लेकर सहमति जताई, जिससे देश की राजनीति में हलचल मच गई है। इस निर्णय का कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने समर्थन किया, लेकिन उन्होंने केंद्र से स्पष्ट समयसीमा और कार्ययोजना की मांग की है। राहुल गांधी ने कहा कि यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में एक अहम कदम है, लेकिन केवल घोषणा से काम नहीं चलेगा। अब ज़रूरत है पारदर्शी क्रियान्वयन की, जिससे समाज के वंचित वर्गों को वास्तविक लाभ मिल सके।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी, जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था। उसके बाद, जातिगत आंकड़े एक राजनीतिक मुद्दा बने रहे, लेकिन उन्हें आधिकारिक जनगणना से बाहर रखा गया।
2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) की गई, लेकिन इसके आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। यह मुद्दा समय-समय पर राजनीतिक विमर्श का हिस्सा रहा है, खासकर जब बात आरक्षण और सामाजिक न्याय की आती है। कई राज्य सरकारें, जैसे बिहार, पहले ही राज्य स्तर पर जाति सर्वेक्षण कर चुकी हैं।
जाति आधारित जनगणना को हरी झंडी
आज 30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जाति आधारित जनगणना को हरी झंडी दे दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इस निर्णय को मंजूरी दी गई।
इस फैसले का कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने समर्थन किया, लेकिन उन्होंने सरकार से इस पर स्पष्ट समयसीमा और लागू करने की कार्य योजना की मांग की। राहुल गांधी ने कहा:
"हम सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हैं, लेकिन सवाल यह है कि यह कब और कैसे लागू होगा। क्या केवल घोषणा से वंचित वर्गों को लाभ मिलेगा? नहीं। इसके लिए पारदर्शी और ठोस योजना चाहिए।"
राहुल गांधी ने इसे "सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम" बताया और कहा कि जब तक सटीक आंकड़े नहीं होंगे, तब तक नीतियां प्रभावी नहीं हो सकतीं।
उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस लंबे समय से इस मांग को उठा रही है और अब जब सरकार ने इसे स्वीकारा है, तो उस पर जल्द अमल भी होना चाहिए।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस जनगणना से देश में आरक्षण नीति, कल्याणकारी योजनाओं और सामाजिक विकास की दिशा में बड़ा बदलाव आ सकता है। जातिगत आंकड़ों से यह स्पष्ट हो पाएगा कि किन वर्गों को वास्तविक लाभ मिल रहा है और कौन अब भी पीछे है।
कई सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने भी इस निर्णय का स्वागत किया है। हालांकि, कुछ वर्गों ने इसके संभावित राजनीतिक दुरुपयोग को लेकर चिंता भी जताई है।